द्रौपदी के पूर्व पीए का आया था फोन: जब पीएम से फ़ोन से बात ख़तम होते ही मुर्मू ने इतना ही कहा मेरे अपने लोग ही मेरे साथ नही।

21 जून रात 8.30 बजे होंगे। मैं अपनी दुकान पर था जब फोन की घंटी बजी। फोन उठाया, सामने से एक आवाज आई, पीएम साहब द्रौपदी मैडम से बात करना चाहते हैं। मैं तुरंत मैडम के घर जाने के लिए निकल पड़ा। 5 मिनट भी नहीं हुए थे जब फोन फिर से बजा। मैंने कहा- अभी पहुंच रहा हूं। मैं मुझको लगा, कुछ ज्यादा जरूरी है। में दौड़कर मैडम के घर में पंहुचा तब वह अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहे थे।

मैंने मैडम को फोन दिया और कहा, प्रधानमंत्री जी आपसे बात करना चाहते हैं। करीब एक मिनट तक बात चली। मैडम चुप रहीं। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। मैं और उनकी बेटी इतिश्री उनकी देखभाल कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने खुद को इकट्ठा किया, उन्होंने जो कहा वह इतिहास बन गया। उन्होंने कहा। ‘इतनी बड़ी खबर और मेरे पास अपने नहीं है,’

मयूरभंज के बीजेपी जिलाध्यक्ष विकास महतो ये बातें कह रहे थे, तब वो भी भावुक हो गए. विकास रवींद्रनाथ महतो के पुत्र हैं, रवींद्रनाथ महतो वो है जिनके आग्रह पर द्रौपदी राजनीति में आयी थी, जिससे आज द्रौपदी एक पार्षद से देश में सर्वोच्च पद तक पहुंची।

विकास कहते हैं, ‘आधे घंटे बाद दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस होने वाली थी और उनमे राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूपमे मुर्मू के नाम घोषणा होनी थी. मुझे पता था कि घोषणा होते ही घर में भीड़ हो जाएगी। मैडम भावुक थीं, उन्हें भीड़ से मिलने की तैयारी करनी थी। किसी तरह हमने उन्हें भीड़ के लिए तैयार किया और आधे घंटे बाद बधाई दी।

मैडम का डायरेक्ट कॉल क्यों नहीं आया?

विकास कहते हैं, ”उनके घर के अंदर सिग्नल की थोड़ी दिक्कत है. कभी-कभी फोन नहीं बजता। शायद उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था। मेरा नंबर पीएमओ में पहले से मौजूद था। राज्यपाल रहते हुए मैडम के पीए की तबीयत बिगड़ गई। तब मैं जुलाई, 2021 से दिसंबर तक पिछले छह महीनों के लिए उनका पीएथा। शायद इसीलिए मुझे पीएमओ का फोन आया।

तब द्रौपदी ने कहा- मैं शिक्षक बन गई हूं, राजनीति मेरे से नहीं होगी ?

हमने द्रौपदी के भाई तारिणी सेन टुडू, उनके शिक्षक बासुदेव बेहरा, परिचितों और परिवार के अन्य सदस्यों से एक सवाल पूछा – क्या आपको लगता है कि द्रौपदी राष्ट्रपति बनेंगी? बेहरा कहती हैं- मुझे विश्वास था कि वह मैट्रिक पास कर शिक्षिका जरूर बनेंगी, लेकिन वह कभी राष्ट्रपति बनने का सपना नहीं देखेंगी। उनके भाई और दूसरों के जवाब कमोबेश एक जैसे ही थे। अंतमे वह शिक्षिका भी बनी।

वर्ष 1997 में रवींद्रनाथ महतो ने द्रौपदी के पति श्याम चरण मुर्मू से कहा – कि द्रौपदी को रायरंगपुर के वार्ड-2 के पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ना चाहिए। हम सब उनका समर्थन करेंगे। उस समय रवींद्रनाथ भाजपा के जिलाध्यक्ष थे। उन्होंने कानून का भी अभ्यास किया था और क्षेत्र में एक जाना माना नाम था।

श्याम ने वही जवाब दिया जो एक मध्यमवर्गीय परिवार का पति देता होगा, ‘यह राजनीति हमारे लिए नहीं है। हम छोटे लोग हैं। महिलाओं के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। लेकिन रवींद्रनाथ श्याम और द्रौपदी को समझाने के लिए दृढ़ थे। उन दोनों को मनाने के लिए कुछ अन्य भाजपा कार्यकर्ताओं को भी साथ ले जाया गया।

विकास कहते हैं, “काउंसलर की सीट एसटी के लिए आरक्षित थी। पार्टी के राज्य नेतृत्व ने कहा की एक योग्य एसटी महिला की तलाश करें। तब मुर्मू भुवनेश्वर के एक आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ने के लिए आई, तब से मैडम के पिता उनसे परिचित थे, और वह दोनों के चाचा भतीजी का संबंध था, तब मैडम रायरंगपुर में एक शिक्षक और श्याम एक बैंक में मैनेजर थे।

वह कहते हैं, ‘पहले तो श्यामजी संतुष्ट नहीं हुए। हमारे समाज में लोग महिलाओं को राजनीति में लाने से हिचकिचाते थे, शायद यही झिझक उनके अंदर भी थी, लेकिन बाद में मान गए। इसके बाद मैडम ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

रवींद्रनाथ महतो के साथ द्रौपदी के चाचा-भतीजी का संबंध कैसे हुआ?

कार्तिक मांझी (सांसद और ओडिशा सरकार के पूर्व मंत्री ) और द्रौपदी मुर्मू, दोनों का जन्म मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में हुआ था। कार्तिक मांझी वह व्यक्ति है जो द्रौपदी को भुवनेश्वर के एक आदिवासी आवासीय विद्यालय में भर्ती करवाई थी। द्रौपदी जिस पृष्ठभूमि से आती हैं, उसको जन्म-जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज प्राप्त करना और फिर भुवनेश्वर जैसे बड़े स्थान पर प्रवेश प्राप्त करना एक कठिन कार्य था।

मांझी की मदद से उन्होंने दाखिला लिया। पूर्व मंत्री कार्तिक मांझी और रवींद्रनाथ महतो के बीच अच्छे संबंध थे। दूर से द्रौपदी मांझी की भतीजी लगती थी। भुवनेश्वर में जब मांझी महतो से द्रौपदी का परिचय कराते हैं तो उनका रिश्ता भी चाचा-भतीजी का हो जाता है।

द्रौपदी चाचा मांझी के घर मिलने के लिए जाया करती थी। राजनीतिक संबंधों और दोस्ती के कारण रवींद्रनाथ भी वह आते जाते रहते थे। यहीं से द्रौपदी और रवींद्रनाथ महतो के बीच गाढ़ संबंध हो गए। द्रौपदी रवींद्रनाथ को अपने चाचा के रूप में सम्मान करती थी। धीरे-धीरे वह महतो के परिवार का सदस्य बन गई। द्रौपदी घर की बेटी की तरह ही विवाह, दुख और सुख में महतो के घर आती थी।

जब द्रौपदी विधायक चुनाव हार गईं, तो महतो ने उन्हें जिलाध्यक्ष क्यु बनाया ?

रायरंगपुर में भाजपा कार्यालय में मौजूद लोगों ने कहा, ”2009 में द्रौपदी ने तीसरी बार विधायक पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. दूसरी ओर रवींद्रनाथ ने जिलाध्यक्ष के रूप में दो कार्यकाल पूरे किए. नियमानुसार उनको अभी तीसरी बार जिलाध्यक्ष का पद नहीं मिल सकता था।

उस समय तक द्रौपदी ओडिशा की राजनीति का एक लोकप्रिय चेहरा बन चुकी थीं। लोगों से मिलने और उनके दुख-दर्द बांटने में द्रौपदी सबसे आगे थीं। महतो चाहते थे कि द्रौपदी राजनीति में सक्रिय हों। इसलिए उन्होंने द्रौपदी को जिला अध्यक्ष बनाया।

अपने पुत्रों की मृत्यु के बाद, द्रौपदी ने महतो से कहा- मैं एक अच्छी मां ना बन शकि।

विकास कहते हैं, ‘जब उनके दोनों बेटे की मोत हो गई तब उन्होंने अपने पिता से कहा- मैं राजनीति छोड़ना चाहती हूं। राजनीती की वजह से मैं अपने बच्चों को समय नहीं दे पाती थी। उनकी ठीक से देखभाल भी नहीं कर सकी। पिता ने उससे कहा – ‘त्रासदी के बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता। ये तुम्हारी भूल नही है। आपको वह काम करना चाहिए जिसके लिए नियति ने आपको चुना है।’

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